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कहमाँ से ऐला पाँचो पाडव, औरो दुरजोधन रे / अंगिका लोकगीत

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

इस गीत में यज्ञ में आये हुए पाँचों पांडव, दुर्योधन और भगवान के स्वागत-सत्कार का उल्लेख है। यज्ञ में आये अतिथियों के लिए यथायोग्य आवास, स्वागत, भोजन और विदाई का वर्णन भी किया गया है।

इसमें पांडव और दुर्योधन के साथ भगवान का भी प्रयोग हुआ है, जो कृष्ण के लिए प्रयुक्त है। लेकिन, कृष्ण को राधा या रुक्मिणी के स्थान पर सीता समर्पित करने का उल्लेख है। यह असंगति लोकमानस की उपज है।

कहमाँ से ऐला<ref>आये</ref> पाँचो पांडव, औरो दुरजोधन रे।
ललना, कहमाँ से ऐलनि<ref>आये</ref> भगमान, कि अजब जग<ref>यज्ञ का अनुष्ठान किया</ref> ठानल रे॥1॥
पुरुबे सेॅ ऐलन पाँचों पांडव, औरो पछिम सेॅ ऐले दुरजोधन रे।
ललना रे, अजोधा से ऐलनि भगमान, कि अब जग ठानल रे॥2॥
कथिए बैठैबै पाँचो पांडव, कि औरो दुरजोधन रे।
ललना रे, कथिए बैठैबैन भगमान, कि अब जग ठानल रे॥3॥
पलँगे बैठैबै पाँचो पांडव, औरो दुरजोधन रे।
ललना रे, अँचराँ बैठैबैन भगमान, कि अबे जग ठानल रे॥4॥
कथिए पानी देबै पाँचो पांडव, औरों दुरजोधन रे।
ललना रे, कथिए पानी देबैन भगमान, कि अब जग ठानल रे॥5॥
ओस पानी देबै पाँचो पांडव, औरो दुरजोधन रे।
ललना रे, झारी पानी देबैन भगमान, कि अब जग ठानल रे॥6॥
किए खिलैबै पाँचो पांडव, औरो दुरजोधन रे।
ललना रे, किए खिलैबैन भगमान, कि अबे जग ठानल रे॥7॥
खूआ<ref>खाओ खायेंगे</ref> खैथिन पाँचो पांडव, औरो दुरजोधन रे।
ललना रे, पाकल पान खैथिन भगमान, कि अबे जग ठानल रे॥8॥
किए लय समदबै<ref>मनाऊँगा, समझाऊँगा</ref> पाँचो पांडव, औरो दुरजोधन रे।
ललना रे, किए लय समदबैन भगमान, कि अबे जग ठानल रे॥9॥
धोती दय समदबै पाँचो पांडव, औरो दुरजोधन रे।
ललना रे, सिय दय समदबैन भगमान, कि अब जग ठानल रे॥10॥
हलसैते जैतै पाँचो पांडव, औरो दुरजोधन रे।
ललना रे, बिहुँसैते जैथिन भगमान, कि अबे जग ठानल रे॥11॥

शब्दार्थ
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