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कहरिया-भरिया / चन्द्रमणि

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चलैरे कहरिया-भरिया मिथिलाक धाम चल
जगतक मइया दइया सियाजीक गाम चल।।
जीवनक भार, भार अनको के टानी
अपन सहारा निज भुजबल मानी
नेनपन बितल जुआनी बीतल
बीतल जिनगी पसेनासँ भीजल
जीवन-धार बहन्त जेना अविचल
बिलमि ले कनिज्जे उठै पुनि चल-चल-चलै रे.....
भइया रे सुरूज उगै छै कथी ले
आठो पहर जरै अनके ले
बदलामे चाहै नै खीर बताशा
अपना ने ओकरा कोनो अभिलाषा
अपनहुँ जिनगी सुरूज सन जल-जल
मेहनति जीवन चाही ने प्रतिफल। चलै रे.....
तिल-तिल युग जेना बदलल जाइये
घर-घर लछुमन राम बिकाइये
नकली दशरथ फान फनै छै
कतेक जनकजी हकन्न कनै छै
सिया धिया उएह अछि राम कोना बदलल
रंग देखैत नयन बहै छल-छल।। चलै रे....