भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कहल की तों मारि सकबह? / धीरेन्द्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कहल की तों मारि सकबह?
मरत यदि ई देह तैयो रहब निश्चय हम जिबितहि।
जरत बस ई रक्त माँसक काय हम्मर।
शब्दमे जे जते सर्जन हमर कएलहुँ,
रचल अछि जे अक्षरक संसार,
झनझनाओल हजारो केर हृदयमे हम
चेतनादायिनी स्वरक झंकारं
रहब खिस्सा रूपमे हमर सगर पसरल,
एक बताहक कथा कहतै सभ सभकें
जकरी जीवन छलै जेना एक पिहानी।
‘बूझि गेलहुँ कहिने जकरा केओ बुझलक।
कहह की तों एहि हेहड़केर खिस्सा
लगा सभटा शक्ति कहियो जारि सकबह ?
कहह की तों मारि सकबह ??