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कहल सुनल मोरा माफ करु ऐ संत जन / किंकर जी
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कहल सुनल मोरा माफ करु ऐ संत जन,
मैं अति पापी नीच॥1॥
युगन-युगन से गुरु नहिं भजलहु,
फँसलहु माया के कीच॥2॥
माया के बीच में रचि-पचि गैलहु,
पड़लहु भव के बीच॥3॥
जनम-मरण के दुख से छोड़ाबहु,
लेबहु भव से खींच॥4॥
युगति-योग करि तोहरो रिझावऊँ,
देहु दया बखशीश॥5॥
दृष्टि युगल करि कहै अछि ‘किंकर’,
चरण नवाबौं शीश॥6॥