भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कहल सुनल मोरा माफ करु ऐ संत जन / किंकर जी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कहल सुनल मोरा माफ करु ऐ संत जन,
मैं अति पापी नीच॥1॥
युगन-युगन से गुरु नहिं भजलहु,
फँसलहु माया के कीच॥2॥
माया के बीच में रचि-पचि गैलहु,
पड़लहु भव के बीच॥3॥
जनम-मरण के दुख से छोड़ाबहु,
लेबहु भव से खींच॥4॥
युगति-योग करि तोहरो रिझावऊँ,
देहु दया बखशीश॥5॥
दृष्टि युगल करि कहै अछि ‘किंकर’,
चरण नवाबौं शीश॥6॥