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कहह नहि जे थाकि गेलहुँ ! / धीरेन्द्र
Kavita Kosh से
कहह नहि जे थाकि गेलहुँ !
सत्ते चलल छी काँट-कुशसँ
भरल ममपर बहुत दिनसँ।
सत्ते नियतिकेर मारिपर
पुनि मारि खयलहुँ।
इहो ठीके ठकपनीकेर ठाठ देखल,
जाहि कोनो आदर्शकेर पाथेय लऽ हम बिदा भेलहुँ,
खोलल समयपर जखनि पोटरी सह-सह नंरिया
पील देखल।
फेकि देलहुँ आइ सभटा ओ पुरनका भ्रमक मोटा,
कऽ रहल छी आइ नूतन प्राणरक्षाकेर व्यवस्था।
ओना एहि अभियानमे अछि बीतल वयसककेर वर्ष ढेरी
की करब सखि ! नियतिकेर थिक आह ! सभ टा
क्रूर फेरी।
अथवा निसर्गक ई परीक्षा ! चलह दऽ दी जेना-तेना
माझमे नहि एना बाजह, मारिसँ हम काँपि गेलहुँ।
कहह नहि जे थाकि गेलहुँ।