भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कहाँ, कहाँ? किस तरफ जा रहा / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(राग भैरवी-ताल कहरवा)

कहाँ, कहाँ? किस तरफ जा रहा? पथिक! पंथकी ओर निहार।
शीघ्र सँभल जा, लक्ष्य ठीक कर, सावधान हो, चाल सुधार॥
भूला मार्ग, सदन निज भूला, भूला बोधरूप अविकार।
भूल गया सर्वस्व सदाशिवरूप नित्य सत्‌‌, सुख-‌आगार॥
ठहर, दौडऩा छोड़, देख टुक पलभरको निज गृहकी ओर।
मोह त्याग, मुड़, पकड़ पंथ शुचि, सरल, सुखद, तज झूठा शोर॥
सत्वर चल चुपचाप, राम जप, देख सभीमें नन्दकिशोर।
सभी, सभीमें, सभी समय मुसकाता प्यारा मुनि-मन-चोर॥