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कहाँ अवकाश ? / महेन्द्र भटनागर

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हमको कहाँ अवकाश है ?

जब मौत से हम लड़ रहे,
प्रतिपल प्रगति कर बढ़ रहे,
ये राह के कंटक सभी
लो धूल में अब गड़ रहे,
करना अँधेरे का हमें बढ़कर अभी ही नाश है !

हमने न देखे शूल भी,
हमने न देखी धूल भी,
हमने न देखे राह के
हँसते हुए मधु फूल भी,
हमने न जाना प्यार क्या औ’ मोह का क्या पाश है !

हम हैं नहीं जो कल रहे,
हम चाल अपनी चल रहे,
क्या हार में, क्या जीत में
हम एक-से प्रतिपल रहे,
दुनिया बदलने के लिए अभिनव अटल विश्वास है !
1945