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कहाँ इसका राजा है रानी कहाँ है / सूरज राय 'सूरज'

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कहाँ इसका राजा है रानी कहाँ है।
अरे यार! इसमें कहानी कहाँ है॥

नहीं राब्ता तेरा कोई वफ़ा से
मुझे भी मोहब्बत निभानी कहाँ है॥

नज़र से सफ़र दिल का है मुख़्तसर सा
है जोख़िम मगर, सावधानी कहाँ है॥

मिला है फ़लक़ को ख़िताबे-बुलन्दी
अभी हमने उड़ने की ठानी कहाँ है॥

मुहब्बत की मुल्क़ों की या मज़हबों की
परिंदे ने सीमाएँ मानी कहाँ है॥

अरे रूह से इसका रिश्ता अज़ल से
ये एहसास मेरा ज़बानी कहाँ है॥

समझ में न बाज़ारे-नफ़रत में आए
दुकां दोस्ती की लगानी कहाँ है॥

पुरानी फटी तूने चादर हमें दी
हमारे लिये ये पुरानी कहाँ है॥

दिखेंगे न तुझको कपट के मुहांसे
तुझे ख़ाके-शीशा हटानी कहाँ है॥

ज़मीं ने कई बार समझाया लेकिन
समझ में कोई बात आनी कहाँ है॥

ख़ुदा तेरा दीदार न हो कभी भी
मुझे अपनी हसरत मिटानी कहाँ है॥

हुआ अरसा मक्खन मुहब्बत का खाए
चलो ढूंढें माँ की मथानी कहाँ है॥

लुटी एक अबला दरोगा से कल शब
बताओ रपट ये लिखानी कहाँ है॥

हुआ राज काले का धानी पर अब तो
मेरे देश की राजधानी कहाँ है॥

वो देहरी का पत्थर बदल डाला तुमने
वो माथे की मेरी निशानी कहाँ है॥

तुझे याद काजल बहू का था बेटे
वो चश्मे की मेरे कमानी कहाँ है॥

अब अपने ही खेतों में मज़दूर हैं हम
जो पुश्तैनी थी वह किसानी कहाँ है॥

कुएँ खोदता है जहाँ के लिए वो
उसे प्यास अपनी बुझानी कहाँ है॥

क़फ़न जान देके ख़रीदा है यारो
किसी की कोई मेहरबानी कहाँ है॥

सहर ढूँढता फिर रहा कोई "सूरज"
समन्दर को बतलाओ पानी कहाँ है॥