भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कहाँ के ऊजे लामू लहेरिया / मगही
Kavita Kosh से
मगही लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
कहाँ के ऊजे लामू<ref>लम्बा</ref> लहेरिया<ref>चूड़ी बेचने वाला, लहेरी</ref>।
झुलनियाँ वाली तोर<ref>तुम्हारी</ref> चूड़ी कते में<ref>कितने में</ref> बिकाऊ?॥1॥
हमरो जे चुड़िया साँवरो<ref>साँवली, श्याम वर्ण की</ref> लच्छ<ref>लाख</ref> रूपइया।
तोर बहियाँ घूमि घूमि जाय।
झुलनियाँ वाली तोर चूड़ी कते में बिकाऊ?॥2॥
हमरो जे पियवा साँवरो बड़ रँगरसिया।
बने बने<ref>वन-वन में</ref> बँसिया बजावे।
झुलनियाँ वाली तोर चूड़ी कते में बिकाऊ?॥3॥
शब्दार्थ
<references/>