भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कहाँ के तूँ तो बराम्हन बरुआ / मगही
Kavita Kosh से
मगही लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
कहाँ के<ref>किस गाँव के</ref> तूँ तो बराम्हन बरुआ<ref>ब्रह्मचारी वेषधारी बालक</ref>।
कहँवाँ बिनती तोहार, माई हे॥1॥
कवन साही<ref>राजा, उपाधि-विशेष</ref> सम्पत सुनि आएल हो बरुआ।
कवन देइ<ref>देवी</ref> दुआर<ref>द्वार</ref> धरि टाड़<ref>खड़ा</ref> माई हे॥2॥
माँगले बरुआ धोती से पोथी, माँगले पीयर जनेऊ, माई हे।
माँगले बरुआ हो चढ़न के घोड़वा, माँगले कनिया कुआँर<ref>क्वाँर कन्या। पत्नी रूप में</ref> माई हे॥3॥
तिरहुत के हम बराम्हन बरुआ, कवन पुर में विनती हमार माई हे।
कवन साही सम्पत सुनि अइली हो बरुआ,
कवन देइ दुआर धइले ठाड़ हे॥4॥
देबों में बरुआ हो धोती से पोथी, देबों में पियर जनेऊ, माई हे।
देबों में बरुआ हो चढ़न के घोड़वा, एक नहीं कनियाँ-कुआँर, माई हे॥5॥
शब्दार्थ
<references/>