भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कहाँ के बाप कहाँ के पूत / कृष्ण मुरारी पहारिया
Kavita Kosh से
कहाँ के बाप, कहाँ के पूत
बँधे हैं सब स्वारथ के सूत
हुए अपने भविष्य से भीत
सभी हैं आज परस्पर मीत
गा रहे तब तक हिलमिल गीत
ढकी जब तक सबकी करतूत
समय का हलका-सा आघात
खोल देता है सारी बात
सूख जाते हैं रातों-रात
नेह के सागर भरे अकूत
18.08.1962