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कहाँ गागर में सागर होतु ऐ भैया / नवीन सी. चतुर्वेदी
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कहाँ गागर में सागर होतु ऐ भैया।
समुद्दर तौ समुद्दरहोतु ऐ भैया॥
हरिक तकलीफ कौं अँसुआ कहाँ मिल’तें।
दुखन कौ ऊ मुकद्दर होतु ऐ भैया॥
छिमा तौ माँग और सँग में भलौ हू कर।
हिसाब ऐसें बरब्बर होतु ऐ भैया॥
सबेरें उठ कें बासे म्हों न खाऔ कर।
जि अतिथी कौ अनादर होतु ऐ भैया॥
कबउ खुद्दऊ तौ गीता-सार समझौ कर।
जिसम सब कौ ही नस्वर होतु ऐ भैया॥
जब’इ हाथन में मेरे होतु ऐ पतबार।
तब’इ पाँइन में लंगर होतु ऐ भैया॥
बिना आकार कछ होबत नहीं साकार।
सबद कौ मूल - अक्षर होतु ऐ भैया॥