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कहाँ छै / सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर'

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बोलोॅ उगलोॅ साँझ कहाँ छै।
गाँधी-खूदीराम कहाँ छै।

साठ साल के आजादी मे
झलकै सचका काम कहाँ छै।

आसाराम जेल मे पड़लोॅ
लेकिन तोता राम कहाँ छै।

फूल-पान सं सजलोॅ-धजलोॅ
हमरोॅ गंगाधाम कहाँ छै।

पैसा पर पानी तक बिक्कै
लेकिन खून के दाम कहाँ छै।