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कहाँ तक अश्क का सौदा करेंगे / आर्य हरीश कोशलपुरी

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कहाँ तक अश्क का सौदा करेंगे
हमारी जुस्तजू रोका करेंगे

दिवाने हैं मेरी बस्ती के ऐसे
उबलते शोर को बहरा करेंगे

वही मजबूरियाँ बेवश के आँसू
नज़ारे कब तलक देखा करेंगे

वो जिनकी मुट्ठियों में है ज़माना
वही तक़दीर का धन्धा करेंगे

दनुजता बाँट के या बम गिराके
खिले गुलशन को फिर सहरा करेंगे

ज़रूरतमंद को रोटी न दीजै
हमेशा जलज़ला देखा करेंगे