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कहाँ थे तुम / अवतार एनगिल
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					कल जब 
घाटी में बहता पानी
इन तरल चट्टानों पर
जल तरंग बजा रहा था
तुम कहाँ थे?
कहाँ थे तुम 
जब वर्षा के बाद 
इन्द्र धनुष से झरती सुगंध
चुपके से आकर
इन महंदी-रची हथेलियों में 
गई थी छिप 
कल जब 
इस दहकते वन में
ब्रास के फूलों लदे पेड़ 
बिखेर रहे थे
अपनी सुर्ख़ ख़ामोशियाँ 
तुम कहाँ थे?
आज जब 
नदी की तरल आँख में
काँच के टुकड़े-सा
चुभ गया मौन 
आन पहुँचे तुम!
आये हो तो बैठो तथागत!
झेल पाओगे क्या 
सूखती झील में
बुद-बुद बहते
मवाद की दुर्गन्ध?
 
	
	

