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कहाँ ये और किसी रास्ते से गुज़रेगा / राम नाथ बेख़बर

कहाँ ये और किसी रास्ते से गुज़रेगा
मलाल साथ तेरे बैठने से गुज़रेगा

जो तेरी सुरमई आँखों से होके गुज़रा है
नहीं वो शख़्स कभी मयकदे से गुज़रेगा

जिसे तलाश रही हैं निग़ाहें मुद्दत से
अभी वो शख़्स मेरे सामने से गुज़रेगा

जो देखना है उसे,आँखें खोलकर रखिये
किसी भी पल वो इसी दायरे से गुज़रेगा

न हार हौसले को आज 'बेख़बर' ऐसे
बुरा ये वक़्त तेरे हौसले से गुज़रेगा