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कहाँ वो बरसातें / विकि आर्य
Kavita Kosh से
कहाँ वो बरसाते कि जब खुद भीग कर
कमीज़ों में किताबें बचाते थे बच्चे
वो टॉफी की पन्नी जो बनती तितलियाँ
किताबों में फूल खिलाते थे बच्चे
ऊँचे उड़ लेता था पुरानी कॉपी का कागज़
कभी कश्ती उस से बनाते थे बच्चे़
रख के किताबों में एक पंख मोर का
ख़्यालों को कई रंग देते थे बच्चे़