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कहाँ से आ गए तुम को न जाने / सरवर आलम राज़ ‘सरवर’

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कहाँ से आ गए तुम को न जाने
बहाने और फ़िर ऐसे बहाने!

कोई यह बात माने या न माने
मुझे धोखा दिया मेरे ख़ुदा ने!

ज़माना क्या बहुत काफी नहीं था?
जो तुम आए हो मुझको आज़माने!

लबों पर मुह्र-ए-ख़ामोशी लगी है
दिलों में बन्द हैं कितने फ़साने!

न मौत अपनी न अपनी ज़िन्दगी है
मगर हीले वही है सब पुराने!

ज़माने ने लगाई ऐसी ठोकर
हमारे होश आए है ठिकाने!

कहाँ तक तुम करोगे फ़िक्र-ए-दुनिया?
चले आओ कभी तुम भी मनाने!

हवा-ए-नामुरादी! तेरे सदक़े
बहार अपनी न अपने आशियाने!

ज़रा देखो कि डर कर बिजलियों से
जला डाले ख़ुद अपने आशियाने!

मिलेंगे एक दिन ‘सरवर’ से जाकर
अगर तौफ़ीक़ दी हम को ख़ुदा ने!