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कहाँ से उठे प्यार की बात / अज्ञेय

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कहाँ से उठे प्यार की बात
जब कदम-कदम पर कोई
असमंजस में डाल दे?

जैसे शहर की त्रस्त क्षिति-रेखा पर रात
धुँधलके के सागर से
एक तारा उछाल दे?

आता है यही : उसी तारे-सा कंटकित
तर्कातीत, निःसंशय
अकारण, निराधार पर निर्भय
एक शब्द-रहित चकित आशीर्वाद।

नयी दिल्ली, 16 मई, 1968