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कहाँ से लाऊँ लोहे की आत्मा? / रमेश ऋतंभर
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एक छोटी-सी गलती पर
मेरा कलेजा कांपता है
एक छोटे-से झूठ पर
मेरी ज़ुबान लङखङाती है
एक छोटी-सी चोरी पर
मेरा हाथ थरथराता है
एक छोटे-से छल पर
मेरा दिमाग़ गङबङा जाता है
कैसे कुछ लोग
बङा-सा झूठ
बङी-सी चोरी
बङा-सा छल कर लेते हैं
और विचलित नहीं होते
क्या उनका कलेजा पत्थर का है
या आत्मा लोहे की?
अब मैं कहाँ से लाऊँ लोहे की आत्मा
और कैसे बनाऊँ पत्थर का कलेजा?