भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कहाँ से लाऊँ लोहे की आत्मा? / रमेश ऋतंभर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक छोटी-सी गलती पर
मेरा कलेजा कांपता है
एक छोटे-से झूठ पर
मेरी ज़ुबान लङखङाती है
एक छोटी-सी चोरी पर
मेरा हाथ थरथराता है
एक छोटे-से छल पर
मेरा दिमाग़ गङबङा जाता है
कैसे कुछ लोग
बङा-सा झूठ
बङी-सी चोरी
बङा-सा छल कर लेते हैं
और विचलित नहीं होते
क्या उनका कलेजा पत्थर का है
या आत्मा लोहे की?
अब मैं कहाँ से लाऊँ लोहे की आत्मा
और कैसे बनाऊँ पत्थर का कलेजा?