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कहाँ है बदन मेरा साया कहाँ है / सूरज राय 'सूरज'
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कहाँ है बदन मेरा साया कहाँ है।
मुझे गर्दिशों ने फंसाया कहाँ है॥
अज़ल से चला था बशर प्यार लेके
मगर रास्ते में गिराया कहाँ है॥
महकने लगी ऐ लहद तेरी मिट्टी
अभी तूने मुझको सुलाया कहाँ है॥
कमाया है जो साथ जाता नहीं वो
जो जाता है तुमने कमाया कहाँ है॥
गले से लिपट रस्सियाँ रो पड़ीं क्यूं
अभी दोष उसने लगाया कहाँ है॥
उसे ज़ब्त का मेरे कैसे पता हो
मुझे दर्द ने आज़माया कहाँ है॥
अरे! कल तलक थी सियासत हमल से
मगर उसने बच्चा गिराया कहाँ है॥
अभी से ही संवाद क्यों भूल बैठे
मदारी ने पर्दा गिराया कहाँ है॥
हथेली तेरी कोरा काग़ज़ है ऐ दिल
लकीरों को आख़िर छुपाया कहाँ है॥
अमावस अभी सिर्फ़ हारा है "सूरज"
अभी मैंने दिल को जलाया कहाँ है॥