कहानियाँ जब नयी लिखो / विपिन सुनेजा 'शायक़'
कहानियाँ जब नयी लिखो तो
कहीं मेरा भी बयान लिखना
बग़ावतों में था मैं भी शामिल
मुझे भी थोड़ा महान लिखना
हुआ हूं पिंजरे में बन्द लेकिन
मेरा सफ़र तो रुका नहीं है
मैं अपने पर फड़फड़ा रहा हूं
इसी को मेरी उड़ान लिखना
चले हुए रास्तों पे चल कर
पहुंच भी जाऊं तो क्या करूँगा
कठिन सही, पर है लक्ष्य मेरा,
नया कोई संविधान लिखना
मैं जानता हूँ ये सारे टीले,
ये सारे पर्वत मेरे लिए हैं
बस इतना करना कि मेरे रस्ते
के अंत में इक ढलान लिखना
जो मेरे हाथों पे लिख चुके हो
मैं उसके बारे में तो कहूँ क्या
न देना माथे को कोई रेखा,
कभी न इस पर थकान लिखना