भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कहानी-2 / लाल्टू

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दस दिन हो गए
शहर से उमस चली गई
एक ट्रेन जो गई मुम्बई
लौटी तो तीन दिन पहले वाली बन कर लौटी
शहर छोड़ते हुए ट्रेन
एक आदमी को लेकर गई थी

वह आदमी दस दिन पहले घर छोड़ जा रहा था
घर में लड़ते हुए उसने अपनी चप्पल उठा ली थी
दस दिन पहले उस आदमी की सोच थी चप्पल

दस दिन पहले उसने बहुत कुछ कहा था
बहुत कुछ कहते हुए वह हर दूसरे आदमी जैसा बन गया था
जो जीवन में किसी एक दिन के दस दिन पहले बहुत कुछ कहते हैं

दसों दिनों तक ट्रेन शहर से जाएगी
दसों दिनों तक दौड़ती रेलगाड़ी हमें सुनाएगी
एक आदमी को गए दस दिन हो गए।