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कहा था / राहुल कुमार 'देवव्रत'

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कहा था ... याद है?
जमीं बड़ी कोमल

कि इसको ज़िल्द पहना चाहिए

वो क्षितिज ...
क्षिप्रा के पार
उसे जो चूमता-सा दिख रहा है शाम ढलते
कोई माशूक-सा लगता ...आवारा

कहो है सत्य कितना?

बराबरी की बात करते बाज़ुबां तुम
कसम से नाच उठते

... याद है?

न समझा ... नोंच लोगे लुंचे मांस
क्षितिज से भी निठुर तुम
नुचे गर्दन से बहते रक्त कत्थई
क्षिप्रा के ठंडे धार धोएंगे