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कहिया टूटत मौन ? / प्रवीण काश्‍यप

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ओ दाढ़ी मोछ रखने बड़का-बड़का
गोहरा रहल अछि भगवती कें
तन्मयता सँ एक टाँग पर ठाढ़
तारपम्य जोरि रहल अछि किंचित!
मुदा कथीक लेल?
ओकर आँखि में अछि मौन
क्रान्ति नहि उन्माद!
क्रान्तिक सड़ल बीज सँ
जन्मल अछि ई आक्रोश उन्माद!
दुनू हाथ जोड़ि उपर उठा
घूमि रहल अछि मौन,
एक टांग पर।
परिक्रमा कऽ रहल अछि
एक स्थान पर।
एम्हर-ओम्हरक क्रिया सँ
विघ्न पड़ल ध्यान मे
क्रोध-आवेगक प्रवाह सँ
टूटि जायत आब मौन!
बहरा रहल अछि
उन्माद-आक्रोश!
एक स्थान पर ठाढ़ अछि मौन!
मुदा कतेक काल?
हठात् जेबी सँ
बहार भेल कुश, क्रोध नहि!
शुद्ध भऽ रहल अछि
भगवतीक ओसार
कुशक अग्रभाग सँ
तृप्त भऽ रहल छथि भगवती!
फेर ठाढ़-बैसति अपसियाँत
नंगरकट्टा कुकुर जकाँ
ताकि रहल अछि अपन नांगरि!
फेर धुपकाठी निकलल
पजरल, सुगंध भेल
फेर परिक्रमा एक स्थान पर!

पद्मासन लगौने भगवतीक दरबार में
आँखिक अग्नि शान्त कऽ रहल अछि विक्षिप्त
तिरस्कार सँ रंगल आँखि
पानि पीबि रहल अछि
मौन भऽ चुकल अछि विक्षिप्त
ओहो जीबि रहल अछि
हमहूँ जीबि रहल छी
हमहूँ पीबि रहल छी
कतेक लोकक बात-बेबहार
कतेक लोकक धुत्कार-सीत्कार
कहिया धरि अनावश्यक
छटपट-चटपट
कहिया धरि दबने रहब मन?
विकार, क्रांति कहिया बनत?
कहिया धरि हम जाबी
लगा सकबै कुकुर सभक मूँह में?
कहिया धरि मूँह सी सकबै
अपन हुँकार सँ?
वा हमरो हुँकार कें मौन कऽ देल जायत?
कि हमहूँ एहिना गोहरयबनि भगवती कें
एक दिन मौन, विक्षिप्त भऽ कऽ?