भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कहिया दिन घुरतै ऊ घाँटो-घँटेसर रोॅ? / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
सुखलोॅ जाय आसोॅ में कमलोॅ फूल पोखरी मेँ
बदला अठोंगर के बेंगे छै ओखरी मेँ
आँखी सेँ लोर गिरै बाबा बटेसर रोॅ।
धुरदा लोटावै छै सिरमोर-पटवासी
निट्ठा दुपहरिया मेँ कानै छै पचरासी
जरलोॅ जाय आगिन मेँ बस्तये केसर रोॅ।
काँटोॅ-कटैया सब कुइयाँ मेँ हुलसै छै
रौदी सेँ माँटी पर दुबड़ी सब झुलसै छै
केना केॅ कहियै ई दोष छेकै इस्सर रोॅ।
जैठां कि घोॅर बसै चुगला रोॅ ठामे-ठाम
बूलै बिन टोक-टाक चूहड़ छै गामे-गाम
की बचतै लाज वहाँ हुँसुली-नकबेसर रोॅ।