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कहिया धरि / ककबा करैए प्रेम / निशाकर
Kavita Kosh से
हमरा
एकटा घर अछि
जाहिमे
बाबा-बाबी
बाबू-माय
भाय-बहिन
बेटा-बेटी
सभ केओ अछि
मुदा,
घरनीक नहि रहने
हमर मोनक बस्तीमे पसरल अछि
चुप्पी
उदासी
आ मसानक साम्राज्य।
नहि जानि कहिया धरि
पसरल रहत ई
मरघट जकाँ।