भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कहि रहल अछि मोन हम्मर राति जएते बीति / धीरेन्द्र
Kavita Kosh से
कहि रहल अछि मोन हम्मर राति जएते बीति।
प्रत्येक भोरक कोड़मे,
कोनो-ने-कोनो काज
प्रत्येक भोरक ठोरपर,
कोनो-ने-कोनो नाम।
काजकेर एहि बोझ तर
आ नामकेर एहि खोजमे,
जिनगिये जाएत बीति !
बीतैत पलकेर सोच
कहियो भेल अछि की ?
काजक ई लागल ढेर
हमरार रोच कहियो भेल अछि की ?
आबओ कोनो बिहाड़ि जिननी हमर जाएत जीति !