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कहीं एक कण / राधावल्लभ त्रिपाठी
Kavita Kosh से
झरते जाएंगे शब्द
जैसे पत्तियाँ झरती हैं पेड़ों से
झरती जाएंगी पदावलियाँ
जैसे फूलों के गुच्छे झर जाते हैं पेड़ों से
झर जाएंगे सारे अर्थ
जैसे फल झर जाते हैं पेड़ों से।
बचेगा ठूँठ अकेला
ठूँठ के भीतर होगा बस शून्य
एकाकी अपने में
उसी शून्य में शेष होगा कहीं एक कण
चाहे तो नवपल्लव जैसे फिर से फूटे शब्द
उसी के भीतर से
चाहें तो फिर फूटे पदावलियाँ
पुष्पों के स्तबकों जैसी
चाहे तो लद जाए फल रस के उस कण मेंसे ही
लेकर आकार
न चाहे तो रसकणिका है ही
वह जो कि मैं हूँ।