Last modified on 9 अप्रैल 2014, at 15:18

कहीं कूडे करकट में झूठन है डाली / देवी नांगरानी

कहीं कूड़े करकट में झूठन है डाली
कहीं पेट निर्धन का रहता है खाली

रक़ीबों की किसको ज़रूरत पड़ी है
जहाँ डोर ये दोस्तों ने संभाली

हर इक मोड़ पर होते देखी तिजारत
हमेशा रही गूंजती धन की ताली

किये जो भी सौदे किये सादगी से
मगर चाल थी जो वो हंसकर छुपाली

उसे देखकर डर गई सारी कलियां
कि उनमें से नोचेगा किस किस को माली

बग़ावत पे उतरी है क्यों सोच ‘देवी’
ग़ज़ल आज क्यों तेवरी ने उठा ली