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कहीं कोई जी रहा है उसके लिए / चन्द्रकान्त देवताले

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जिसकी आँखों से ओझल नहीं हो रहे खण्डहर
समय के पंखों को नोंच
अपने अकेलेपन को तब्दील कर रही जो पतझर में

बिन दर्पण कुतर रही अपनी ही परछाईं
घर के फाटक पर चस्पा कर दी सूचना
"यहाँ कोई नहीं रहता"...

उसे पता तक नहीं
गाती हुई आवाज़ों के घर में
कहीं कोई जी रहा है
उसके लिए ।