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कहीं ग़म थाम लेगा और कहीं लाचारियां होंगी / अलका मिश्रा
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कहीं ग़म थाम लेगा और कहीं लाचारियां होंगी
"तमन्नाओं की बस्ती में बहुत दुस्वारियाँ होंगी
भड़क उट्ठी ये कैसी आग मेरे दिल की बस्ती में
मेरे सीने में ही शायद कहीं चिंगारियां होंगी
सुनो! तुम सोच कर राह-ए-मुहब्बत में क़दम रखना
यहाँ मंज़िल से पहले राह में रुसवाईयाँ होंगी
अगर वो दूर जाएगा तो मुझ तक लौट आएगा
सफ़र में साथ उस के मेरी भी परछाइयाँ होंगी
नहीं उम्मीद कोई साथ आए मेरे मंज़िल तक
यही तो राह सच की है जहां तन्हाईयाँ होंगी