कहीं दूर न जा / पाब्लो नेरूदा
कहीं दूर न जाना, एक दिन के लिए भी नहीं, क्योंकि
क्योंकि -- इसे कह पाना मैं शायद नहीं जानता
पर कितना तवील होता है एक दिन और फिर
मैं तुम्हारी राह देखता रहूँगा,
जैसे किसी सूने स्टेशन में खड़ा,
रस्ता देखता रहूँ उन रेलगाड़ियों का
जो खड़ी हों कहीं और ही
आँखें मूंदें, ऊँघती-सी ।
मुझे छोड़ के न जाना, एक वक्फ़े को भी नहीं,
क्योंकि गर तुम गई तो एक साथ दौड़ पड़ेंगी दर्द की नन्हीं बूँदें,
ठिकाने की खोज में भटकता धुआँ कर लेगा घर मुझमें
और घुट के रह जाएगा बेचैन दिल मेरा ।
काश ! सागर-तट पर दिखता तेरा साया कभी न घुले
कभी न हिलें इस वीरान दूरी में तुम्हारी पलकें .
एक लमहे को भी तुम मुझे छोड़ कर न जाना.. जानां
क्योंकि, उस एक पल में इतनी दूर तुम हो जाओगी
कि भटक जाऊँगा मैं इस कायनात की भूलभुलैया में
पूछता फिरूँगा ..
कि क्या तुम लौट कर आओगी ?
या छोड़ जाओगी मुझे..
मौत का मुन्तज़िर करके ?
भावना मिश्र द्वारा अँग्रेज़ी से अनूदित