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कहीं पर भी कोई हलचल नहीं है / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
कहीं पर भी कोई हलचल नहीं है।
समस्याएँ बहुत पर हल नहीं है॥
अधर प्यासे निकट बहती नदी भी
भरा जल है मगर निर्मल नहीं है॥
लगा लो अधर से प्याला मिला जो
सुधा-सम नीर गंगा-जल नहीं है॥
सुनाई दे रहा है दूर से जो
किसी का करुण स्वर है छल नहीं है॥
तरुवरों की घनेरी छाँव है यह
घिरा आकाश में बादल नहीं है॥
तुम्हारी है ज़रूरत हर कदम पर
यहाँ दूजा कोई सम्बल नहीं है॥
न झिझको ज़िन्दगी के रास्तों पर
भरे शूलों से हैं मखमल नहीं हैं॥