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कहीं पे चीख होगी और कहीं किलकारीयाँ होंगी / सलीम रज़ा रीवा

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कहीं पे चीख होगी और कहीं किलकारीयाँ होंगी
अगर हाकिम के आगे भूख और लाचारियाँ होंगी

अगर हर दिल में चाहत हो शराफ़त हो सदाक़त हो
मुहब्बत का चमन होगा ख़ुशी की क्यारियाँ होंगी

किसी को शौक़ यूँ होता नहीं ग़ुरबत में जीने का
यक़ीनन सामने उसके बड़ी दुश्वारियाँ होंगी

ये होली ईद कहती है भला कब अपने हांथों में
वफ़ा का रंग होगा प्यार की पिचकारियाँ होंगी

न छोड़ो ये समझ के आग अब ठंडी होगी
ये मुम्किन है दबी कुछ राख में चिंगारियाँ होंगी

मुक़ाबिल में है आया एक जुगनू आज सूरज के
यक़ीनन पास उसके भी बड़ी तैयारियाँ होंगी

सुख़नवर का ये आंगन है रज़ा शेरों की ख़ुश्बू है
ग़ज़ल और गीत नज़्मों की यहाँ फुलवारियाँ होंगी