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कहीं फिर आज कोई बम फटा है / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
कहीं फिर आज कोई बम फटा है।
जमाना इस कदर सहमा हुआ है॥
न अब हथियार दहशत को बनाओ
हमेशा खून ही इसमें बहा है॥
न समझौता परिस्थिति से करो यूँ
हरिक दिल में कोई सच्चा छुपा है॥
चमन में फूल रहने दो न तोड़ो
बहुत दिन बाद ये ऐसे खिला है॥
बने जो कौम के गद्दार उनकी
बनेगी ज़िन्दगी जैसे सजा है॥
बलाओं से बची है जान उसकी
उतर आयी किसी माँ की दुआ है॥
किसी का दुख नहीं महसूस करता
ज़माना सिर्फ़ खुद को जानता है॥