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कहीं वह तुम तो नहीं हो? / दिनेश कुमार शुक्ल

इस निशा वैश्वानरी के
तप्त झोंकों में विहँसती
उड़ रही चिंगारियों के साथ
कोई और भी है
उड़ रहा
जलता हुआ घनघोर तम में
कहीं वह तुम तो नहीं हो?

वो अमावस के निकष पर झलमलाता एक तारा
जो यहाँ से दिख रहा है
आँख के प्रतिबिम्ब जैसा
किसी निर्मल क्षीरसागर में अकेला
कहीं वह तुम तो नहीं हो?

अगर तुम हो वहाँ उतनी दूर...
तो फिर यहाँ पर यह कौन है
भरा मेरे हृदय, मेरे वक्ष पर पसरा...?