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कही मान लो छोड़ो नसे बाजी कही मान लो / बुन्देली

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

कही मान लो छोड़ो नसे बाजी, कही मान लो।
चरस पिये धर्म, कर्म लाज शर्म जाय,
ज्ञान जाय ध्यान जाय, मान घट जाये।
कही...
भंग पिये वादी हो जात है सब अंग,
मदरा गांजो कर देत पैसे से तंग।
कही...
मदिरा पिये से हो जात है बदनाम।
थुक-थुक तम्बाकू और बुरो काम।
कही...