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कहू कोना मनैब ई होरी / कालीकान्त झा ‘बूच’

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कहू कोना मन बी ई होरी!
ब्रज भेल बज्र सुखायल मधुवन
कंसक अछि सगरो बलजोरी
आजुक राधा केँ नसीब नहि
संकर बीजक रोटी आधा!
माखन सपन भेल दूधियों मे
सखा लोकनि केँ बरका बाधा
कत' अबीर कत' पुचकारी!

श्यामक हाथ भीख केर झोरी
विषमय घाट विवर्जित पनिघट
नागक राज कोना हम आबू
कंचुकि पट पाटल पुरान अछि
धूमिल तन मन अछि बेकाबू
खेलब रंग कोना हे प्रियतम
भेल कपोल गुलालक चोरी
 
एक पद नर दोसर पद नारी
समअधिकारक युग छल द्वापर
दुहू लेल आँगन दुहू लेल मधुवन
दुहू मिलि रसक बहौलक निर्झर
हमरा लेल मुदा हे मोहन
जमुना आइ नगर केर मोड़ी...