मैथिली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
कहू ने सगुन केर बतिया गे दैया
चारि मास हम आस लगाओल
विरह दगध भेल छतिया गे दैया
अपनो ने आबथि, लिखि ने पठाबथि
केहन कठोर छनि छतिया गे दैया
ककरा सँ हम पतिया लिखायब
के समोधत बतिया गे दैया
देओरा सँ हम पतिया लिखायब
ननदि समोघत बतिया गे दैया
सूरदास प्रभु तुम्हरे दरस बिनु
कोना खेपब दिन-रतिया गे दैया