भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कहें जो 'हाँ' तो नहीं है, 'हाँ' भी, 'नहीं' कहें तो 'नहीं' नहीं है / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
कहें जो 'हाँ' तो नहीं है, 'हाँ' भी, 'नहीं' कहें तो 'नहीं' नहीं है
भले हैं आँखों से हैं वे ओझल, खनक तो पायल की हर कहीं है
वे मिल तो लेते हैं आँखों-आँखों, नहीं भी दिल में जो कुछ कहीं है
शराब प्याले में हो न हो, पर,नशा तो पीने में कम नहीं है
गये जो आने का वादा करके, चले भी आयें कि वक़्त कम है
हदें भी हों ज़िन्दगी की आगे, क़रार मिलने का पर यहीं है
क़सूर है मेरे देखने का, कि है तेरा आइना ही झूठा
कभी जो तू था तो मैं नहीं था, अभी जो मैं हूँ तो तू नहीं है
हरेक सुबह आके पोंछता है, गुलाब! कोई तुम्हारे आँसू
भले ही पांवों का धूल पर कुछ निशान उसका नहीं कहीं है