कहै जाट तूं डूम हो लिया बाप मेरा बहकाया / मेहर सिंह
देश नगर घर गाम छूटग्या कितका गाणा गाया
कहै जाट तूं डूम हो लिया बाप मेरा बहकाया।टेक
कातिक की पूर्णिमा नै गढ़ गंगा न्हाया करते
सारे छोरे कट्ठे हो कै गाणा गाया करते
जितने छोरे यार बास थे फेटण आया करते
उन दुष्टां नै के मिलग्या जो मनैं बुरा बताया करते
राम करै वो निर्वस जाइयों मैं हत्थे म्हं कटवाया।
रागणियां के बारै बाप नैं हाड़ लिये सब बट्टे
जितणे छोरे यार बास थे ना बैंठण दिये कट्ठे
हांसी मसकरी सब छूटगी मेरे छूटे उडाणे ठठ्ठे
जो दिन थे मेरे ईब नाहण के दिन बरेली मैं कट्टे
छोरे छारे नाहण चले मेरी आंख्या मैं पाणी आया।
अलबत तो मनैं होकै जाट यो गाणा गाणा ना था
बालक पण मैं कार सिखली फेर पछताणा ना था
पहलम तैं मनैं जाण नहीं थी मैं इतना स्याणा ना था
एक गलती खा बैठ्या मनैं ब्याह करवाणा ना था
ब्याह करवाएं पाच्छै लोगों मैं बहोत घणा पछताया।
इस दुनियांदारी म्हं रहकै मनैं मुलक देख लिए सारे
लगा जीभ कै छोड़ दिये ये ना मिठे ना खारे
तूं अधीनि तैं करें जा गुजारा मेहरसिंह जाट बिचारे
तेरी माया का बेरा कोन्या फल कर्मा के न्यारे
राजा तैं कगाल बणा दे हे ईश्वर तेरी माया।