भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कहै दादा सॅ इक पोता / सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कहै दादा सॅ इक पोता, कि बाबू याद आबै छै
कहींने नें हमर मैया, अबेॅ सिन्दूर लगाबै छै।

जों गहलै छै कभी कौवा, तेॅ ढेला फेंकी केॅ मैया
अहो बोलोॅ न हो दादा, तुरत कहिनें भगाबै छै।

खनाखन हाँथ मेॅ चूड़ी, बजै छै रोज काकी केॅ
हमर मैया के हांथों मेॅ, अहो मठिया पिन्हाबै छै।

पुजै छै तीज, करवाँ-चैथ ई टोला मुहल्ला केॅ
मगर मैया सॅ पूछै छी तेॅ कानी कॅ कनाबै छै।

बथानी भैंस नै बकरी, न कोनोॅ गाय किल्ला मेॅ
मगर कींनी केॅ पाथा-भर दही कहिनें जमाबै छै।