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कहो कि मुझसे प्यार करती हो / निज़ार क़ब्बानी

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कहो कि मुझसे प्यार करती हो...
ताकि मैं सुन्दर हो जाऊँ
कहो कि मुझसे प्यार करती हो...
कि मेरी उँगलियाँ सोने की हो जाएँ
और मेरा माथा दिये-सा दमके
कहो कि मुझसे प्यार करती हो
ताकि मैं पूरी तरह बदल जाऊँ
और बन जाऊँ
एक गेहूँ की बाल या एक पेड़
अब कह भी दो, हिचकिचाओ मत
कोई-कोई प्यार देर नहीं सह पाते
कहो कि मुझसे प्यार करती हो
ताकि मेरा दैवत्व और बढ़ जाए
और मेरी प्रेम कविताएँ
बन जाएँ एक पावन ग्रन्थ
अगर तुम चाहो तो मैं कैलेण्डर भी बदल दूँगा
कुछ मौसम मिटा दूँगा, कुछ जोड़ दूँगा
और पुराना साल मेरे हाथों में निरस्त्र-सा होगा
मैं औरतों का राज्य स्थापित कर दूँगा ।
कहो कि मुझसे प्यार करती हो
ताकि मेरी कविताएँ तरल हो जाएँ
और मेरी लिखावट बहुत सुन्दर
अगर तुम मेरी प्रिय होती
तो मैं घोड़े और जहाज़ लेकर
सूरज पर चढ़ाई कर देता ।
संकोच मत करो...यही एक मौक़ा है
मेरे ईश्वर बनने का...
या बनने का...पैगम्बर ।