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कहो घाट पर / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
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कहो, घाट पर
कितने लोग इन दिनों आते
हमने पूछा -
घटवारा था मित्र हमारा
आया उमड़ आँख में उसकी
सागर खारा
कभी सुना था
हमने उसको रसिया गाते
वह बोला था -
कौन आयेगा भला घाट पर
कोई न आता
बना नयार पुल जबसे ऊपर
नाले आते
पाप-गंदगी सँग हैं लाते
हमने देखा -
नदी.लग रही थी अपराधिन
सन्नाटे में काट रही थी
वह अपने दिन
सुना तभी हमने
जल को ख़ुद को गरियाते