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कहो राम, कबीर / अज्ञेय

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न कहीं से
न कहीं को
पुल

न किसी का
न किसी पे
दिल

न कहीं गेह
न कहीं द्वार
सके जो खुल

न कहीं नेह
न नया नीर
पड़े जो ढुल...

यहाँ गर्द-गुबार
न कहीं गाँव
न रूख
न तनिक छाँव
न ठौर

यहाँ धुन्ध
यहाँ ग़ैर सभी
गुमनाम
यहाँ गुमराह
सभी पैर

यहाँ अन्ध
यहाँ-न-कहीं-यहाँ दूर...
कहो राम,
कबीर!

अक्टूबर, 1979