भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कह दो खुल के अगर शिकायत है / हरि फ़ैज़ाबादी
Kavita Kosh से
कह दो खुल के अगर शिकायत है
मुँह छुपाने की क्या ज़रूरत है
बात जो भी हो साफ़ ही कहना
गोल बातों से मुझको नफ़रत है
झूठ के दिन बहुत नहीं होते
कल भी थी अब भी ये सदाक़त है
क़त्ल को हादसा बना डाला
ये भला कौन सी महारत है
आज जो काम कर दे रिश्वत से
समझो कि उसमें कुछ शराफ़त है
मिट्टी हरदम दिमाग़ में रखना
ज़िंदगी की यही हक़ीक़त है
यूँ ही मज़बूत वो नहीं आख़िर
ताज की नींव में मोहब्बत है