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कह रहा हूँ सच सभी खाकर कसम भगवान की / नन्दी लाल

कह रहा हूँ सच सभी खाकर कसम भगवान की।
उम्र भर करता रहा हूँ चाकरी ईमान की।।

धूल में पैदा हुआ हूँ धूल में मिल जाऊंगा,
राजमहलें सोच लें चिंता जिन्हें पहचान की।।

नर्म दिल से हर दफे हम ढील ही देते रहे,
बदजुबानी इस तरह बढ़ती गई शैतान की।।

हँस रहे हैं वो जिन्होंने मुफ्त की रोटी चखी,
रो रहे हैं वह जिन्होंने जिन्दगीं कुर्बान की।।

सोचते दरबार में कैसे पहँुच अपनी बने,
हाँ हजूरी कर रहे हैं बैठकर दरबान की।।

बुझ चुका है जो उसे अब भी बुझाने पर लगे,
फिक्र रत्ती भर नहीं जलते हुए सामान की।।

जो कभी थी आज भी है और आगे भी रहे,
मिट नहीं सकती कभी पहचान हिन्दुस्तान की।।