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क़त्ल / तुम्हारे लिए, बस / मधुप मोहता
Kavita Kosh से
जिसे निगाह ने चाहा, जिसने किया दिल में घर
क़तरा-क़तरा जो बहा रग-रग में यूँ सारी उमर,
जैसे जलता है तिल-तिल शम’अ पे कोई परवाना
या कोई डूबता दम तोड़े पहुँच साहिल पर,
ऐसे क़ातिल से बच भी जाएँ तो फिर जाएँ कहाँ
यही बेहतर कि मर जाएँ इश़्क की इस मंज़िल पर।