भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
क़त्ल के बाद / उत्तमराव क्षीरसागर
Kavita Kosh से
गिलास भर पानी की तरह
पी जाता हूँ अपनी नींद को
आँखें जैसे खाली गिलास
देखता हूँ, एक कमरे की
रोशनी से बाहर का अँधेरा
दूर-दूर तक अँधेरा
अँधेरे में सोया हे जग सारा
खोया-खोया-सा
अपने सुख-चैन में
मुग्ध-तृप्त
भीतर टटोलता हूँ अपने
कुछ मिलता नहीं !
कमरा भर रोशनी के क़त्ल के बाद
अपने भीतर
पाता हूँ बहुत-सी चीज़ें
अँधेरे में साफ़-साफ़
-2001 ई0